अभी हाल ही फ़िलहाल में श्री धाम वृंदावन के श्री राधारमण जी के दर्शनों का सुख मेरे इन नयनो को प्राप्त हुआ हैं... उनके श्री मंदिर में उनकी मनोहारी छवि के दर्शन प्राप्त कर मन को परम शांति की अनुभूति हुई.... जिससे मेरा वो मन श्री राधारमण जी से इस प्रकार से अपनी भावनाओ की अभिव्यक्ति करता हैं....
जब से देखा तुझे, जाने क्या हो गया...
हे वृंदावन के श्री राधारमण, मैं तेरा हो गया...
तू दाता है, तेरा पुजारी हूँ मैं...
तेरे दर का लाल जी भिखारी हूँ मैं...
तेरे चौखट पे दिल ये मेरा खो गया..
हे वृंदावन के श्री राधारमण, मैं तेरा हो गया...
जब से मुझको, तेरी मोहन भक्ति मिली...
मेरे मुरझाये मन में, ये कालिया खिली..
जो न सोचा कभी, था वही हो गया..
हे वृंदावन के श्री राधारमण, मैं तेरा हो गया...
तेरे दरबार की वाह, अजब शान है...
जो भी देखे वो ही, तुझेपे कुर्बान है...
तेरी प्रीति का मुझको नशा हो गया...
हे वृंदावन के श्री राधारमण, मैं तेरा हो गया...
लाल जी! जब तेरी झांकी का, दर्शन किया...
तेरे चरणों में तन-मन, यह अर्पण किया...
एक दफा वृंदावन धाम, में जो भी गया.,.
हे वृंदावन के श्री राधारमण, वो तेरा हो गया...
जब से देखा तुझे, जाने क्या हो गया...
हे वृंदावन के श्री राधारमण, मैं तेरा हो गया...
और जब आकस्मात मेरी दृष्टि श्री राधारमण जी के श्री कमल चरणों के पायल के घुंघरुओं पर पड़ी तो इस ह्रदय ने मन ही मन प्रभु से कहा....
इतनी कर दे दया श्री राधारमण, तेरे चरणों में जीवन बिताऊं...
मैं रहु इस जगत में कही भी, तेरे श्री चरणों को न भूल पाऊं....
प्रेम बंधन में यूं मुझको बांधो, डोर बंधन की टूटे कभी ना...
अपनी पायल का घुँघरू बना लो, दास चरणों से छुटे कभी ना...
अपने चरणों से ऐसे लगा लो, तेरे चरणों का गुणगान गाऊं....
मैं रहु इस जगत में कही भी, तेरे श्री चरणों को न भूल पाऊं....
अपनी नजरों से कभी न गिराना, नेक राहों पे मुझको चलाना...
दीनबंधु दया का खजाना, बेबसों पे हमेशा लुटाना....
मैं तो जैसा भी हूँ बस तुम्हारा, आके दर पे खड़ा सिर झुकाऊं...
मैं रहु इस जगत में कही भी, तेरे श्री चरणों न भूल पाऊं....
इतनी कर दे दया श्री राधारमण, तेरे चरणों में जीवन बिताऊं...
मैं रहु इस जगत में कही भी, तेरे श्री चरणों को न भूल पाऊं....
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